गुरुवार, 19 दिसंबर 2013

430. प्रीत (7 हाइकु) पुस्तक - 48, 49

प्रीत

******* 

1.
प्रीत की डोरी
ख़ुद ही थी जो बाँधी
ख़ुद ही तोड़ी।

2.
प्रीत रुलाए
मन को भरमाए
पर टूटे न।

3.
प्रीत की राह
बस काँटे ही काँटे
पर चुभें न।

4.
प्रीत निराली
सूरज-सी चमके
कभी न ऊबे।

5.
प्रीत की भाषा,
उसकी परिभाषा
प्रीत ही जाने।

6.
प्रीत औघड़
जिसपे मंत्र फूँके
वह न बचे।

7.
प्रीत उपजे
जाने ये कैसी माटी
खाद न पानी ।

- जेन्नी शबनम (8. 12. 2013)
_____________________

11 टिप्‍पणियां:

shalini kaushik ने कहा…

nice haiku

डॉ. रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक' ने कहा…

बहुत सुन्दर प्रस्तुति...!
--
आपकी इस प्रविष्टि् की चर्चा आज बृहस्पतिवार (19-12-13) को टेस्ट - दिल्ली और जोहांसबर्ग का ( चर्चा - 1466 ) में "मयंक का कोना" पर भी है!
--
सूचना देने का उद्देश्य है कि यदि किसी रचनाकार की प्रविष्टि का लिंक किसी स्थान पर लगाया जाये तो उसकी सूचना देना व्यवस्थापक का नैतिक कर्तव्य होता है।
--
हार्दिक शुभकामनाओं के साथ।
सादर...!
डॉ.रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक'

Anupama Tripathi ने कहा…

प्रीत निराली
सूरज-सी चमके
कभी न ऊबे ।

बहुत सुंदर हाइकु जेन्नी जी ...!!सभी हाइकु भावपूर्ण ।

Ramakant Singh ने कहा…

Great lines with deep emotons

मेरा मन पंछी सा ने कहा…

bahut hi sundar..
preet ke ptyek rang me sundar haiku..
:-)

दिगम्बर नासवा ने कहा…

प्रीत के कांटे चुभते हैं पर दर्द नहीं होता ...
सभी हाइकू प्रीत के रंग में रंगे ...

Amrita Tanmay ने कहा…

अति..अति सुन्दर है ये प्रीत..

कालीपद "प्रसाद" ने कहा…

प्रीत पर बढ़िया हाइकु
नई पोस्ट मेरे सपनों का रामराज्य (भाग १)

धीरेन्द्र सिंह भदौरिया ने कहा…

बहुत ही उम्दा,प्रभावी प्रस्तुति...!

RECENT POST -: एक बूँद ओस की.

Maheshwari kaneri ने कहा…

सभी बहुत बढिया हैं..

shalini rastogi ने कहा…

वाह जेन्नी शबनम जी .. प्रीत के अनोखे रंगों कि छटा बिखेर दी आपने तो .. बहुत खुबसूरत !